दरअसल यह सब होता है थाना परिसर में स्थापित मां काली के मंदिर के कारण। इस मंदिर के साथ पूरे क्षेत्र की ऐसी आस्था है कि हर गुरुवार को कोतवाली मे महिला भक्तों का कब्जा हो जाता है। मंदिर में बेशकीमती धातु और पत्थर से मिश्रित मां काली की एक आदमक़द प्रतिमा स्थापित है। जिसका वजन कई कुंतल है।थाना परिसर में करीब 40 साल पहले स्थापित इस मंदिर के पीछे भी एक कहानी है जब खरौली गंगा तट पर स्थापित इस सैकड़ों वर्ष प्राचीन प्रतिमा को चोरों ने मंदिर से चुरा लिया था। लेकिन प्रतिमा का वजन ज्यादा हो जाने से चोर इसे ज्यादा दूर न ले जा पाए और लोगों ने प्रतिमा को फिर मंदिर में स्थापित कर दिया।
बावजूद इस बेशकीमती प्रतिमा को चुराने के कई बार प्रयास किये गए। जिससे लोगों की मांग के बाद प्रतिमा को सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस थाने में ले आयी।थाना परिसर में ही कई साल तक इस प्रतिमा को रखा गया,लेकिन क्षेत्र के लोग पूजा अर्चना के लिए कोतवाली पहुँचते रहे। लोगों की आस्था को देखते हुए पुलिस ने इसे कोतवाली के अंदर एक मंदिर बनाकर स्थापित करवा दिया। तब से यहाँ विधिवत पुजा की परंपरा शुरू हुई।
मंदिर के साथ पूरे क्षेत्र के लोगों का श्रद्धा, आस्था और भक्ति का ऐसा जुड़ाव है कि पूरा थाना परिसर ही भक्तिमय हो जाता है। विशेषकर महिलाओं में काली माँ के प्रति अटूट श्रद्धा है। हर गुरुवार को सैकड़ों की संख्या में कोतवाली में महिलाएं जुटती है और लाई , चना मिठाई के साथ माँ की घंटों पूजा अर्चना होती है। महिलाओ की एक टोली मे न्यूनतम 14 से लेकर 28 महिलाओ की संख्या होती है। यह महिलाए देवी कथा, भजन करती है।
हर गुरुवार को इस प्रकार से औसतन 15 से बीस टोली आती है। कभी कभी तो इतनी बड़ी संख्या में भीड़ जमा हो जाती है कि महिलाओं की टोली को बाहर इंतजार करना पड़ता है और यह सिलसिला पूरे दिन चलता रहता है। इस दौरान पूरी कोतवाली भक्तिमय हो जाती है , और पुलिस कर्मियों को अपना सामान्य कामकाज समेत कर एक किनारे जाना पड़ता है। गुरुवार को थाना परिसर किसी धाम की तरह भक्ति में डूबी रहती है और पुलिस कर्मी भी काम के साथ साथ भक्तों की आस्था में सहयोग में लगे रहते हैं।
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