ओलंपिक खेलों में मेडल जीतने के बाद उसे कांटते हुए खिलाडि़यों की तस्वीरें सबने देखी होंगी, लेकिन इसका कारण शायद ही लोग जानते हैं। हालांकि, इसके बारे में पक्का कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन इडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी खबर के मुताबिक ऐसा खिलाड़ी सोने की शुद्धता परखने के लिए करते हैं।
मेडल जीतने के बाद उसकों दांतों से काटने की परंपरा एथेंस ओलंपिक से ही शुरू हुई थी। लेकिन 1912 के स्टॉकहोम ओलंपिक के बाद यह परंपरा बंद हो गई थी। स्टॉकहोम ओलंपिक में ही खिलाडि़यों को अंतिम बार शुद्ध सोने के मेडल दिए गए थे। माना जाता है कि खिलाड़ी मेडल को काटकर उसमें मौजूद सोने के असली या नकली होने की तस्दीक करते हैं। यह एक परंपरा के रूप में शुरू हुई जो आज भी कायम है।
ओलंपिक खेलों में खिलाडि़यों को जो गोल्ड मेडल दिया जाता है, उसमें 494 ग्राम चांदी और केवल 6 ग्राम सोना होता है। इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ ओलंपिक हिस्टोरियन के अध्यक्ष डेविड का मानना है कि मेडल को दांत से काटना दरअसल खिलाडि़यों के पोज देने का तरीका है। इसके जरिये वे अपनी जीत को दिखाते हैं। धीरे-धीरे यही इसका मान्य तरीका बन गया है।
कहा जाता है कि सोने की शुद्धता की वास्तविक पहचान दांतों से काटने के बाद ही होती है। ऐतिहासिक रूप से सोने की जांच के लिए यह तरीका सदियों पुराना है। उसे दांतों से काटने पर सोने पर दांत के निशान पड़ जाते हैं।
अब यह परंपरा है या पोज देने का तरीका, लेकिन इसके चलते खेले के मैदान पर कुछ रोचक नजारे भी देखने को मिले हैं। साल 2010 में जर्मनी के एथलीट लुगर मोलर जीत के बाद अपने सिल्वर मेडल को दांतों से काट रहे थे, तभी दांत उनका दांत निकलकर बाहर आ गया।
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